येही कारण था कि सय्यद हुसैन शरफुद्दीन शाहविलायत साहब 30 जून 1272 को जब इस शहर में पहुचे तो यहीं के हो गए. शाहविलायत साहब के पीर ने कहा था के उस शहर में अपना ठिकाना बनाए जहाँ खाने में दो चीज़ें एक साथ मिल जाएँ, आम और रोहू मछली. ऐसा ही हुआ और शाहविलायत साहब इसी शहर के होगए. आपने इस शहर को नाम दिया अमरोहा.
इस शहर का हर नागरिक इस बात पर गर्व करता है की वो अमरोहा का रहने वाला है और चाहे वो संसार के किसी भी कोने में हो वो अमरोहवी कहलाने में अपनी शान समझता है. इस ही कारण से अमरोहा का नागरिक संसार के हर कोने में मिलजाता है.
ये शहर जो मुरादाबाद ज़िले का हिस्सा था 24 अप्रैल 1997 को एक अलग ज़िला बना दिया गया और इस ज़िले का नाम ज्योतिबा फुले नगर करदिया गया. आज इस बात को पूरे 15 साल बीत गए हैं और हम अमरोहा वासियों ने इस में कभी कोई विरोध नहीं रखी. परुन्तु आज 15 साल बीतने के पश्चात हम चाहते हैं की इस अमरोहा ज़िले का नाम ज्योतिबा फुले नगर से बदल कर शाहविलायत नगर होना चाहिए. इस का कारण हैं की अमरोहा को ये नाम सय्यद हुसैन शरफुद्दीन शाहविलायत साहब ने दिया था और उनका चमत्कार संसार के हर कोने में प्रसिद्ध है, कि उनकी दरगाह में बिच्छु नहीं काटता. ये ही कारण है कि हम अमरोहा वासी चाहते हैं की अमरोहा ज़िले का नाम शाहविलायत नगर होना चाहिए.
हमारा अमरोहा वसियों से आगरेह है कि वो इस आनदोलन के लिये हस्ताक्षर अभियान मे योगदान दे और इस आनदोलन को सफ़ल बनने मे सहायक हो. ज़ियादा से ज़ियादा हस्ताक्षर कर के सरकार को हम इस आनदोलन के माध्यम से अपनी इच्छा प्रकट करें.
धन्यवाद
नदीम नक्वी